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कृत्रिम बुद्धि: मशीनों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता

कृत्रिम बुद्धि (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई) मानव और अन्य जन्तुओं द्वारा प्रदर्शित प्राकृतिक बुद्धि के विपरीत मशीनों द्वारा प्रदर्शित बुद्धि है। कंप्यूटर विज्ञान में कृत्रिम बुद्धि के शोध को "होशियार एजेंट" का अध्ययन माना जाता है। होशियार एजेंट कोई भी ऐसा सयंत्र है जो अपने पर्यावरण को देखकर, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करता है। बोलचाल से, "कृत्रिम बुद्धि/होशियारी " शब्द लागू होता है जब एक मशीन इंसानों की "संज्ञानात्मक" कार्यों की नकल करती है। Andreas Kaplan और Michael Haenlein कृत्रिम बुद्धिमत्ता को “किसी प्रणाली के बाह्य डेटा को सही ढंग से व्याख्या करने, ऐसे डेटा से सीखने, और सुविधाजनक रूपांतरण के माध्यम से विशिष्ट लक्ष्यों और कार्यों को पूरा करने में उन सीखों का उपयोग करने की क्षमता” के रूप में परिभाषित करते हैं।[1][2] यह कार्य "सीखने" और "समस्या निवारण" के साथ जोड़ती है। [3] कृत्रिम बुद्धि (प्रज्ञाकल्प, कृत्रिमप्रज्ञा, कृतकधी) का अर् संगणक में अर्पित बुद्धि है। मानव सोचने-विश्लेषण करने व याद रखने का काम भी अपने दिमाग के स्थान पर यन्त्र कम्प्यूटर से कराना चाहता है।

कृत्रिम बुद्धि, कंप्यूटर विज्ञान की एक शाखा है जो मशीनों और सॉफ्टवेयर को बुद्धि के साथ विकसित करता है। 1955 में जॉन मैकार्थी ने इसको कृत्रिम बुद्धि का नाम दिया और उसके बारे में "यह विज्ञान और इंजीनियरिंग के बुद्धिमान मशीनों बनाने के" के रूप परिभाषित किया। कृत्रिम बुद्धि अनुसंधान के लक्ष्यों में तर्क, ज्ञान की योजना बना, सीखने, धारणा और वस्तुओं में हेरफेर करने की क्षमता, आदि शामिल हैं। वर्तमान में, इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सांख्यिकीय विधियों, कम्प्यूटेशनल बुद्धि और पारंपरिक खुफिया शामिल हैं। कृत्रिम बुद्धि का दावा इतना है कि मानव की बुद्धि का एक केंद्रीय संपत्ति एक मशीन द्वारा अनुकरण कर सकता है। वहाँ दार्शनिक मुद्दों के प्राणी बनाने की नैतिकता के बारे में प्रश्न् उठाए गए थे। लेकिन आज, यह प्रौद्योगिकी उद्योग का सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा बन गया है।

कृत्रिम बुद्धि (एआई) का दायरा विवादित है: क्यूंकि मशीनें तेजी से सक्षम हो रहे हैं, जिन कार्यों के लिए पहले मानते थे की होशियारी चाहिए, अब वह कार्य "कृत्रिम होशियारी" के दायरे में नहीं आते। उद्धाहरण के लिए, लिखे हुए शब्दों को पहचानने में अब मशीन इतने सक्षम हो चुके हैं, की इसे अब होशियारी नहीं मानी जाती।[4] आज कल, एआई के दायरे में आने वाले कार्य हैं, इंसानी वाणी को समझना [5], शतरंज या "गो"[6] के खेल में माहिर इंसानों से भी जितना, बिना इंसानी सहारे के गाडी खुद चलाना।

कृत्रिम बुद्धि का वैज्ञानिकों ने सन १९५६ में अध्धयन करना चालू किया। इसके इतिहास में कई आशावाद के लहरें आती थीं, फिर असफलता से निराशा, और फिर नए तरीके जो फिर आशा जागते थे।[7][8][9] अपने अधिकांश इतिहास के लिए, एआई अनुसंधान को उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जो अक्सर एक-दूसरे के साथ संवाद करने में विफल रहते हैं।[10] ये उप-क्षेत्र तकनीकी विचारों पर आधारित हैं, जैसे कि विशेष लक्ष्यों (जैसे "रोबोटिक्स" या "मशीन लर्निंग"),[11] विशेष उपकरण ("तर्क" या "तंत्रिका नेटवर्क"), या गहरे तात्विक अंतर।[12][13][14] उप-क्षेत्र सामाजिक कारकों पर भी आधारित हैं (जैसे निजी संस्थानों या निजी शोधकर्ताओं के काम)।[10]

एआई अनुसंधान की पारंपरिक समस्याओं (या लक्ष्यों) में तर्क , ज्ञान प्रतिनिधित्व , योजना , सीखना , भाषा समझना , धारणा और वस्तुओं को कुशलतापूर्वक उपयोग करने की क्षमता शामिल है। मानव जैसे होशियारी क्षेत्र के दीर्घकालिक लक्ष्यों में से एक है। इस समस्या का हल करने के लिए वैज्ञानिकों ने सांख्यिकीय (स्टैटिस्टिकल) तरीके, और पारम्परिक "सिंबॉलिक" तरीके अपनाए हैं। एआई विज्ञान के लिए कंप्यूटर विज्ञान , गणित , मनोविज्ञान , भाषाविज्ञान , तत्वविज्ञान और कई अन्य के क्षेत्र गए हैं।

इस वैज्ञानिक क्षेत्र को इस धारणा पर स्थापना की गई थी कि मानवीय बुध्दि को "इतने सटीक रूप से वर्णित किया जा सकता है कि इसे नकल करने के लिए एक मशीन बनाई जा सकती है"।[15]  यह मन की प्रकृति और मानव-जैसी बुद्धि के साथ कृत्रिम प्राणियों के निर्माण के नैतिकता के बारे में प्रष्न उठाता है, जो प्राचीन काल से कथाओं के द्वारा खोजे गए हैं।[16]  कुछ लोग कृत्रिम बुद्धि (एआई) को मानवता के लिए खतरा मानते हैं, अगर यह अनावश्यक रूप से प्रगति करता है।[17] अन्य मानते हैं कि एआई, पिछले तकनीकी क्रांति के विपरीत, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का खतरा पैदा करेगा।


इतिहास-
यांत्रिक या "औपचारिक" तर्क का अध्ययन गणितज्ञों के साथ प्राचीन काल में शुरू हुआ। गणितीयतर्क के अध्ययन ने "एलन ट्यूरिंग" (जो एक कंप्यूटर वैज्ञानिक थे) के "कंप्यूटर सिद्धांत" का जन्म दिया। इस सिद्धांत का मन्ना है की मशीन, "०" और "१" जैसे सरल चिह्न, को जोड़-तोड़ के कोई भी बोधगम्य गणना कर सकते हैं। वह यह भी कहता है की आज के साधारण कंप्यूटर ऐसे मशीन हैं। यह दृष्टि, कि कंप्यूटर औपचारिक तर्क की किसी भी प्रक्रिया को अनुकरण कर सकते हैं, जिसे चर्च-ट्यूरिंग थीसिस के नाम से जाना जाता है। न्यूरबायोलॉजी (दिमाग का जीवविज्ञान), सूचना का विज्ञानं और साइबरनेटिक में खोजों ने शोधकर्ताओं को इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क बनाने की संभावना पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। ट्यूरिंग (एक कंप्यूटर वैज्ञानिक) ने प्रस्तावित किया कि "यदि कोई मनुष्य मशीन और मानव से प्रतिक्रियाओं के बीच अंतर नहीं कर सकता है, तो मशीन को "मानव की तरह बुद्धिमान" माना जा सकता है। पहला काम जिसे आम तौर पर एआई के रूप में पहचाना जाता है वह "मैकुलचच" और "पिट्स" के 1943 औपचारिक डिजाइन "ट्यूरिंग-पूर्ण" "कृत्रिम न्यूरॉन्स" के लिए था। एक "ट्यूरिंग-पूर्ण" मशीन कोई भी बोधगम्य ggggg गणना कर सकते हैं।

भले की मशीनों के बुद्धि विकसित के शोध का शुरूआत 1943 हुआ हो लेकिन Artificial Intelligence शब्द का पहेली बार इस्तेमाल John McCarthy ने ही 1956 में Dartmouth Conference किया था और कहा था की science और engineering का इस्तेमाल करके एक ऐसा computer बनाया जा सकता है जो की खुद से ही सोचकर समझकर निर्णय ले सकें इसलिए हम john McCarthy को ही Artificial Intelligence के पिता के रूप में जानते है

कटौती, तर्क और समस्या को सुलझाने-

पहले, कृत्रिम बुद्धि शोधकर्ताओं ने एसा एल्गोरिदम विकसित किया जो मनुष्य को हल करते समय उपयोग या तार्किक निर्णय लेने के लिए उपयोग करते थे। वे अनिश्चित या अधूरी जानकारी के साथ संभावना का संकल्पना निपटते है।

अनुप्रयोग

कृत्रिम बुद्धि के संभावित अनुप्रयोगों प्रचुर मात्रा में हैं। वे मनोरंजन उद्योग के लिए, कंप्यूटर खेलों और रोबोट पालतू जानवर। बड़ा प्रतिष्ठानों जैसे अस्पतालों, बैंकों और बीमा, जो ऐ ग्राहक व्यवहार की भविष्यवाणी और रुझानों का पता लगाने के लिए उपयोग कर सकते हैं।[19] एप्पल का सिरी प्राकृतिक भाषा के प्रश्नों और अनुरोध को समझाने में सक्षम है जो कृत्रिम बुद्धिमता[मृत कड़ियाँ] एक उदाहरण है

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